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आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन

सफलता के सात सूत्र साधन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4254
आईएसबीएन :0000

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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...

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छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें


जीवन की सफलता-असफलता पर हमारे व्यवहार की छोटी-छोटी बातों का भी बहुत बड़ाप्रभाव पड़ता है। छोटी-छोटी आदतें स्वभाव की जरा-सी विकृति, रहन-सहन का गलत ढंग आदि सामान्य-सी बातें होने पर भी मनुष्य की उन्नति, विकास, सफलताके मार्ग में रोड़ा बनकर खड़ी हो जाती है किंतु इनका सुधार न करके लोग अपनी असफलताओं को दूसरे कारण गढ़कर अपने आपको संतुष्ट करने का असफल प्रयासकरते हैं।

दूसरों पर पड़ने वाला प्रभाव मनुष्य के व्यक्तित्व को संसार में रास्ता देता है।मनुष्य के व्यवहार, बातचीत, जीवन, तौर-तरीकों एवं व्यवहारिक पहलुओं के आधार पर ही समाज उसके प्रति अपनी राय निर्धारित करता है, जिसका मनुष्य केजीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। समाज में उच्च स्थान और उसकी सहयोग पावर मनुष्य बहुत बड़ी सफलता अर्जित कर सकता है। समाज से तिरस्कृत और दूरहटकर मनुष्य, जीवन की सभी बाह्य संभावनाओं से वंचित भी हो जाता है। अतः सामान्य भूलों, स्वभाव की विकृति, रहन-सहन, बोल-चाल का फूहड़पन एवं अन्यभद्दे तौर-तरीकों में सुधार करना आवश्यक है।

कई लोग उत्तेजित स्वभाव के होते हैं। बात-बात पर, हर समय व्यवहार मेंउत्तेजित होने वाले मनुष्य सहज ही दूसरों से लड़ाई-झगड़ा कर लेते हैं। किसी बात पर ऐसे लोग ठंडे दिमाग से विचार नहीं कर पाते। इसी तरह कईव्यक्ति इस तरह के होते हैं कि मन ही मन किसी सोच-विचार, मानसिक उलझन से परेशान रहते हैं। उनके चेहरे पर क्लाति, द्वंद्व-बेचैनी के भय झकलते रहतेहैं। कइयों को आत्म-विश्वास का अभाव, हीनता की भावना, घबराहट आदि ही असंतुलित बना देते हैं। इस तरह की सभी बातें मनुष्य की मानसिक अस्वस्थताकी परिचायक हैं, जो जीवन के प्रत्येक क्रिया-कलाप में प्रकट होती रहती है। इससे प्रभावित होने वाले दूसरे लोगों की अच्छी राय नहीं बनती। कोई भीसमझदार आदमी उत्तेजित, हीन भावना युक्त, अंतर्द्वद्व में परेशान, क्लांत व्यक्ति को अपने काम में लगाना या साथ रखना पसंद नहीं करेगा। ये सभी बातेंसामान्य-सी लगती हैं। किंतु किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए ये बहुत बड़ी बाधक हैं।

प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही अपने आप एक चलता-फिरता बोलता विज्ञापन है। यह भी सच हैकि विज्ञापन जैसा होगा उसका प्रभाव भी वैसा ही पड़ेगा। बात-चीत, वेश-भूषा, रहन-सहन से मनुष्य का व्यक्तित्व प्रदर्शित होता है। जिन बुरी आदतों सेअपना गलत विज्ञापन हो, अपना फूहड़पन, बेवकूफी जाहिर हो उन्हें छोड़ने का प्रयत्न करना आवश्यक है।

कई लोग दूसरों के सामने नजर से नजर मिलाकर बात-चीत करने में झिझकते हैं। कईतो बात-चीत करते हुए कपड़ों के छोर ऐंठने लगते हैं, कई तिनका उठाकर जमीन कुरेदने लगते हैं, कई मुँह में अँगुली देकर नाखून चबाते हैं। इनका प्रभावदूसरों पर अच्छा नहीं पड़ता। इससे व्यक्तित्व का खोखलापन, क्षुद्रता जाहिर होती है। समाज में ऐसे लोगों को महत्त्व नहीं मिलता और न अच्छी श्रेणी केलोगों में समझा जाता है इस तरह झिझकने वाले, कमजोर मनोभूमि के लोगों से किसी बड़े काम के संपादन की आशा भी नहीं की जा सकती।

बात-चीत का स्तर भी मनुष्य के प्रभाव, व्यक्तित्व को प्रकट करता है। ज्यादा चुपरहने वाले अथवा अधिक बोलने वाले दोनों ही तरह के लोग अच्छे नहीं समझे जाते। आवश्यकतानुसार ठोस और नपी-तुली बातचीत करना मनुष्य के व्यक्तित्व कोवजन बढ़ाती हैं। बिना सोचे-समझे, ऊटपटांग, भाषा की अशुद्धता, अशिष्टता, जोर-जोर से बातें करना, बीच में ही किसी को टोक देना, बेमौके बात करना,अपनी ही अपनी कहते जाना बातचीत के दोष हैं। बातचीत में अपने ही विषय, अनुभवों की भरमार रखना, दूसरों को मौका न देना, किसी की बहिन बेटी केसौंदर्य की चर्चा, परनिंदा आदि से मनुष्य के ओछेपन का अंदाजा कोई भी सहज ही लगा सकता है। बातचीत के इन दोषों के कारण कोई भी व्यक्ति अपनी अच्छीराय कायम नहीं कर सकता। समाज में भी ऐसे व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं मिलता। इनसे दूसरों पर अच्छा प्रभाव न पड़कर बुरा ही पड़ता है। इससेमनुष्य की उन्नति सफलता दूर की बात बनकर रह जाती है।

कई लोग ठीक और सही बात भी बड़ी कर्कशता और रूखेपन के साथ कहते हैं। कई उपदेशकप्रेम, मैत्री, दया का उपदेश देते हैं, दूसरों की प्रशंसा आदर्शों की बातें कहते हुए भी ऐसे लगते हैं मानो ये किसी से लड़ रहे हैं। आवाज की इसकर्कशता को दूर करना भी आवश्यक है। बातचीत में मधुरता, गंभीरता, स्पष्टता, व्यवस्था रखने से दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। साधारण योग्यता वालेभी अपनी बातचीत की मधुरता से बड़े-बड़े काम निकाल सकते हैं किंतु अपने उक्त दोषों को दूर न करने वाले यही शिकायत करते पाए जाते हैं-"क्या करेंहम लोगों से अच्छी बात कहते हैं, उनका हित चाहते हैं, फिर भी लोग हमें बुरा समझते हैं, हमसे दूर रहने का प्रयत्न करते हैं।” इसका कारण दूसरेलोगों का इस तरह का व्यवहार नहीं अपितु कर्णकटु, रूखी बातचीत करना ही है।

कई लोग धर्म, अध्यात्म, समाज, मानवता की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। बातोंमें, विचारों में, आकाश कुसुमों को तोड़ने में नहीं चूकते, किंतु धरती पर काम में आने वाली छोटी-छोटी बातों पर तनिक भी ध्यान नहीं देते। फलतः वे नजमीन के रहते हैं न आसमान के, उनका कोई महत्त्व कायम नहीं होता। जिनके वस्त्र, अस्त-व्यस्त हों, बाल-बिखरे हुए हों, खाने, पीने, बैठने, रहने काकोई ढंग नहीं, जिनकी जीवन पद्धति में कोई व्यवस्था क्रम न हो, उल्टा फूहड़पन, भद्दापन टपकता हो ऐसे व्यक्ति न कोई महत्त्वपूर्ण कार्यों कासंपादन ही कर सकते हैं न किसी क्षेत्र में विशेष सफलता अर्जित कर सकते हैं।

किसी भी तरह के चारित्रिक, व्यवहारिक दोष मनुष्य को असफलता और पतन की ओरप्रेरित कर सकते हैं। समाज में उसका मूल्य, प्रभाव, नष्ट कर सकते हैं। महान पंडित, विज्ञानी, बलवान रावण केवल अपने अहंकार और परस्त्री आसक्तिमें ही नष्ट हो गया। सारे समाज यहाँ तक कि पशु-पक्षियों तक ने उसका विरोध किया। इसी तरह इतिहास के पृष्ठों पर लिखी पतन की कहानियों में मनुष्य कीचारित्रिक हीनता ही प्रमुख रही है। चरित्र और व्यवहार की साधारण-सी भूलें मनुष्य की उन्नति विकास का रास्ता रोक लेती हैं।

कई लोग बिना किसी बात के अथवा सामान्य-सी घटनाओं में ही मुँह फुलाकर उदास,मनहूस से देखे जाते हैं, जो वातावरण में भी मुर्दनी, नैराश्य की विवशता, पराजय, भयंकरता को पैदा करते हैं। किंतु एक ओर ऐसे भी लोग होते हैं, जोअपनी प्रसन्नता, मुस्कराहट, आशाभरी हँसी से एक सजीव सुंदर, उत्कृष्ट वातावरण का निर्माण करते हैं। केवल मनुष्य के दृष्टिकोण और जीवन जीने कीइच्छा शक्ति का अंतर है। यह तो ध्रुव सत्य है कि दुःख-दर्द, उदासी तो सभी के पास आती-जाती रहती हैं। समाज उन्हें ही तरजीह देता है। जो उसे हँसी,मुस्कराहट, प्रसन्नता, सरसता दे सकें। श्मशान में भी नवजीवन युक्त कुसुमों की कली खिला सकें, भयंकरता में सौंदर्य, प्रसाद, मृदुता का सृजन कर सकें।हर वक्त अपने दुःखों, परेशानियों, अभावों का रोना रोने वाले से लोग अपना पीछे छुड़ाना चाहेंगे क्योंकि इनकी तो दूसरों के पास भी कमी नहीं होती।

सामाजिक सहयोग, लोगों की सहायता तथा अपने क्षेत्र में सफलता से वंचित होने का एकबड़ा कारण है, प्रत्येक बात में दूसरों की आलोचना करना। दरअसल कई लोगों को ऐसी प्रवृत्ति ही होती है, जिसमें चाहे कैसा भी वातावरण हो आलोचना किएबिना उन्हें तृप्ति ही नहीं मिलेगी। हर समय, हर बात को आलोचना की कसौटी पर कसना अच्छी बात नहीं, इससे लोग दूर हटने की कोशिश करते हैं और मनुष्यदूसरों के कई अनुभव, महत्त्वपूर्ण जानकारी, विचार, ज्ञान से वंचित रहता है।

ये छोटी-छोटी बातें मनुष्य की उन्नति में बहुत बड़ी बाधक बन जाती हैं। इनकेसुधार के लिए सदा ही प्रयत्न करते रहना चाहिए। कई बार असफलताओं का कारण इन छोटी-छोटी बातों की उपेक्षा ही होती है। इस उपेक्षा के कारण काम कीव्यवस्था पर तथा कार्य से संबंधित अन्य व्यक्तियों पर जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसी के परिणामस्वरूप असफलता सामने आती है। यह तथ्य न समझने वालेलोग अपने प्रयासों के बावजूद विफल रह जाने का कारण भाग्य, देवी-देवता आदि को या दूसरों द्वारा उत्पन्न की गई ज्ञात-अज्ञात बाधाओं आदि को मान लेतेहैं। उन्हें लगता है कि सदा ऊँचे विचार और अच्छे इरादे रखने पर भी हमें सफलता नहीं मिली, तो इसका कारण किसी रहस्यमय सत्ता का विधि-विधान है।

दूसरी ओर छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने वाले जागरूक, तत्पर एवं रचनात्मकदृष्टिकोण वाले लोग असफलताओं के बीच भी सफलता के नए मार्ग ढूंढ निकलाते हैं और उस हेतु व्यापक सहयोग-संबल प्राप्त कर लेते हैं।

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    अनुक्रम

  1. सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
  2. सफलता की सही कसौटी
  3. असफलता से निराश न हों
  4. प्रयत्न और परिस्थितियाँ
  5. अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
  6. सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
  7. सात साधन
  8. सतत कर्मशील रहें
  9. आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
  10. पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
  11. छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
  12. सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
  13. अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए

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